एकमुखी कवच – Ek Mukhi Hanuman Kavach PDF

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(Ek Mukhi Hanuman Kavach PDF) आप को भूत प्रेत संकट से रक्षा करता है। आपने हनुमान कवच पाठ हिंदी में PDF डाउनलोड करने के लिए यह सही वेबसाईट चुनी है।

एक बार स्वामी रामदास जी ने शिवजी से पूछा – “युद्ध के समय यदि भूत पिसाच का सामना करना पड़े तो कोण उन्हे सहायता करेगा।”

इस पर शिवजी ने कहा:

शिवजी बोले :- “सुनो देवी , लोक कल्याण हेतु भगवान श्री राम ने विभीषण को जो श्री हनुमान जी के कवच के बारे बताया था । जो अत्यंत दिव्य है और प्रकार है। सूर्य के समान तेजस्वी , असुरों के गर्व का नाश करने वाले , ब्रह्मतत्व जानने वाले , श्री हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए। जिनका शरीर वज्र के समान कठोर है ।पीले बाल है ,जो स्वर्ण कुंडल पहने हुए हैं। ऐसे हनुमान जी का मैं ध्यान करता हूं।”

Ek Mukhi Hanuman Kavach PDF Download:

जैसे हनुमान चालीसा, बजरंग बान, सुंदरकांड पाठ का मंगलवार और शनिवार शुभ दिन होता है, वेसे ही हनुमान कवच का पठन करना रविवार के दिन शुभ माना जाता है।

EkMukhi Hanuman Kavach in Hindi

।। अथ श्री एकमुखि हनुमत्कवचं प्रारंभयते ।।

प्रपछ्छ गिरिजा कांन्तं कर्पूरधवलं शिवं ।। १ ।।

भगवन देवदेवश लोकनाथ जगत्प्रभो ।
शोकाकुलानां लोकनां केन रक्षा भवेद्वव ।। २ ।।

संग्रामे संकटे घोरे भूत प्रेतादि के भये ।
दुख दावाग्नि संतप्तचेतसाँ दु: खभागिनाम् ।। ३ ।।

श्रणु देवि प्रवलक्ष्यामि लोकानाँ हितकाम्यया ।
विभिषणाय रामेण प्रेम्णाँ दत्तं च यत्पुरा ।। ४ ।।

कवच कपिनाथस्य वायुपुत्रस्य धीमत: ।
गुह्मं तत्ते प्रवक्ष्यामि विशेषाच्छणु सुन्दरी ।। ५ ।।

ॐ अस्य श्री हनुमान कवच स्त्रोत मंत्रस्य श्री राम चन्द्र ऋषि:
श्री वीरो हनुमान परमात्माँ देवता,
अनुष्टूप छन्द: मारूतात्मज इति बीज़म ,
अंजनीसुनुरीति शक्तिः , लक्षमण प्राणदाता इति जीव: ,
श्रीराम भक्ति रीति कवचम ,
लंकाप्रदाहक इति कीलकम मम सकल कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोग: ।।

ॐ ऐं श्रीं ह्रांँ ह्रीं हूं हैं ह्वौं ह्वं: ।

ॐ ह्रांँ अंगुष्ठाभ्याँ नमः

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्याँ नमः

ॐ हूं मध्यमाभयाँ नमः

ॐ हैं अनामिकाभ्याँ नमः

ॐ ह्वौं कनिष्ठिकाभ्याँ नमः

ॐ ह्वं: करतल करपृष्ठाभ्याँ नमः

ॐ अंजनी सूतवे नमः हृदयाय नमः

ॐ रुद्रमूर्तये नमः , शिरसे स्वाहा ।

ॐ वतात्मजाय नमः , शिखायं वषटं ।

ॐ रामभक्तिरताय नमः , कवचाय हुम ।

ॐ वज्र कवचाय नमः , नेत्रत्याय वौषट् ।

ॐ ब्राह्मस्त्र निवारणाय नमः , अस्त्राय फट् ।

ॐ धयायेद बालदिवाकर धुतिनिभं देवारिदर्पांपहं ।

देवेन्द्र प्रमुख प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं ऋचा ।।

सुग्रीववादि समस्त वानरयुतं सुव्यत्कतत्वप्रियं ।

संरक्तारूण लोचनं पवनजं पीतांबरालकतम ।।

उधन्मार्तण्ड कोटि प्रकट रुचि युतं चारूबीरासनस्थं ।

मोजीं यज्ञोपवीताभरण रुचि शिखा शोभितं कुण्डलाढयम ।।

भक्तानामिष्टदन्नप्रणतमुंजनं वेदनादप्रमोदं ध्यायेददेवं विधेय प्लवगकुलपतिं गोष्पदीभूतवर्धिम ।

वज्रांँड़् पिंगकेशाढ्यं स्वर्णकुंडल मण्डितम ।

उधदक्षिण दोर्दण्डं हनुमंत विचिन्तये ।।

स्फटिकाभं स्वर्णकांति द्विभुजं च कृताज्जलिम ।

कुण्डलद्वय संशोभि मुखाम्भोजं हरिं भजे ।।

ॐ नमो भगवते हनुमदाख्य रुद्राय
सर्व दुष्ट जन मुख स्तम्भनं कुरु कुरु ॐ ह्रांँ ह्रीं हूंँ ठं ठं ठं फट स्वाहा ।

ॐ नमो हनुमते शोभिताननाय यशोलंकृताय अंजनी गर्भ संभूताय
रामलक्ष्मणनंदकाय कपि सैन्य प्रकाशय पर्वतात्पाटनाय सुग्रीववसाह्म करणाय परोच्चाटनाय कुमार ब्रह्मचर्चाय गम्भीर शब्दोदयाय
ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रूंँ सर्व दुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा ।

ॐ नमो हनुमते सर्व ग्राहन्भूत भविष्यद्वर्तमान दूरस्थ समीप स्थान
छिंधि छिंधि भिंधि भिंधि सर्व काल दुष्ट बुद्धिमुच्चाटयोच्चाटय परबलान क्षोभय क्षोभय मम
सर्व कार्याणि साधय साधय ॐ ह्राँ ह्रीं हूंँ फट देहि ॐ शिव सिद्धि ॐ ह्राँ ह्रीं हूंँ स्वाहा ।

ॐ नमो हनुमते पर कृत यंत्र मंत्र पराहङ्कार
भूत प्रेत पिशाच पर दृष्टि सर्व तर्जन चेटक विधा सर्व ग्रह भयं निवारय निवारय ,
वध वध पच पच दल दल विलय विलय सर्वाणिकुयन्त्राणि कुट्टय कुट्टय , ॐ ह्राँ ह्रीं हूंँ फट स्वाहा ।

ॐ नमो हनुमते पाहि पाहि एहि सर्व ग्रह भूतानाँ शाकिनी डाकिनीनां विषमदुष्टानाँ सर्वेषामा कर्षय कर्षय , मर्दय मर्दय , छेदय – छेदय ,मृत्यून मारय मारय , शोषय शोषय , प्रज्वल प्रज्वल, भूत मंडल , पिशाच मंडल , निरसनाय भूत ज्वर , प्रेत ज्वर , चातुर्थिक ज्वर , विष्णु ज्वर , महेश ज्वर , छिन्धि छिन्धि , भिंधि भिंधि ,अक्षि शूल , पक्ष शूल , शिरोभ्यंतर शूल , गुल्म शूल , पित्त शूल , ब्रह्म राक्षस कुल पिशाच कुलच्छेदनं कुरु प्रबल नाग कुल ।

विषं निर्विषं कुरु कुरु झटति झटति , ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रूंँ फट घे घे स्वाहा ।

हनुमान पूर्वत: पातु दक्षिणे पवनात्मज: ।
पातु प्रतीच्याँ रक्षोघ्न: पातु सागरपारग: ।। १।।

उदीच्यामूधर्वग: पातु केसरी प्रिय नंदन: ।
अधस्ताद विष्णु भक्तस्तु पातु मध्मं च पावनि: ।। २।।

अवान्तर दिश: पातु सीता शोकविनाशक: ।
लंकाबिदाहक: पातु सर्वापद्भ्यो निरंतरम ।। ३ ।।

सुग्रीव सचिव: पातु मस्तकं वायुनंदन: ।
भालंं पातु महावीरो भ्रुव्रोमध्ये निरंतरम ।। ४ ।।

नेत्रेच्छायापहारी च मातु न: प्लवगेव्श्रेर: ।
कपोले कर्णमूले च पातु श्री राम किंकर: ।।५।।

नासाग्रमज्जनीसुनू पातु वक्त्रं हरीशव्श्रर ।
वाचं रुद्रप्रिय पातु जिव्हा पिंगल लोचन: ।। ६ ।।

पातु दंतान फाल्गुनेष्टाच्श्रिबुकं दैत्यापादहा ।
पातु कंठम च दैत्याचारी: स्कांधौ पातु सूरार्चित : ।। ७ ।।

भुजौ पातु महातेजा: करौ तो चरणायुध: ।
नखान नखायुध: पातु कुक्षिं पातु कपीव्श्रर: ।। ८ ।।

वक्षो मुद्रापहारी च मातु पाशर्वे भुजायुध: ।
लंकाविभज्जन: पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम ।।९ ।।

वाभिं च रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मज: ।
गुह्मं पातु महाप्राज्ञो लिंग पातु शिव प्रिय: ।। १० ।।

ऊरू च जानुनी पातु लंका प्रासाद भज्जन: ।
जंघे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबल: ।। ११।।

अचलोद्वारक: पातु पादौ भास्कर सन्निभ: ।
अड़्न्यमित सत्वाढय: पातु पादाँगुलीस्तथा।।१२ ।।

सर्वांन्डानि महाशूर: पातु रोमाणि चात्मवान ।
हनुमत्कवच यस्तु पठेद विद्वान विचक्षण: ।। १३ ।।

स एव पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं मुक्तिं च विंदति ।
त्रिकालमेककालं वा पठेम्मासत्रयम सदा ।। १४ ।।

सर्वानरिपुनक्षणाजित्वा स पुमानश्रियमात्नुयात ।
मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तधारम पठेद यदि ।। १५ ।।

क्षयापस्मार कुष्ठादि ताप ज्वर निवारणम ।
अव्श्रत्थमूलेर्कवारे स्थतवा पठति य पुमान ।। १६ ।।

अचलाँ श्रियमात्नोति संग्रामे विजयं तथा ।
लिखित्वा पूजयेद यस्तू सर्वत्र विजयी भवेत् ।। १७ ।।

य: करे धारयेन्नित्यं सपुमान श्रियमापनुयात ।
विवादे धूतकाले च धूते राजकुले रणे ।। १८ ।।

दशवारं पठेद रात्रौ मिताहारो जितेंद्रिय: ।
विजयं‌ लभेत लोके मानुषेषु नराधिप: ।। १९ ।।

भूत प्रेत महादुर्गे रणे सागर सम्प्लवे ।
सिंह व्याघ्रभये चोग्रे शर शस्त्रास्त्र पातने ।। २० ।।

श्रृंखला बंधने चैव कराग्रह नियंत्रणे ।
कायस्तोभे वह्वि चक्रे क्षेत्रे घोरे सुदारणे ।। २१ ।।

शोके महारण चैव बालग्रहविनाशनम ।
सर्वदा तु पसेन्नित्यं जयमाप्नुत्यसंशयम ।। २२ ।।

भुर्जे व वसने रक्ते क्षीमे व ताल पत्रके ।
त्रिगन्धे नाथ मश्यैव विलिख्य धारयेन्नर: ।। २३ ।।

पञ्च सप्त त्रिलोहैर्वागोपित कवचं शुभम ।
गले कटयाँ बाहुमूल कंठे शिरसि धारितम ।। २४ ।।

सर्वान कामान वापनुयात सत्यं श्रीराम भाषितं ।। २५ ।।

Ek Mukhi Hanuman Kavach पढ़ने के फायदे:

यदि आप नियम से हर रविवार के दिन हनुमान कवच का पठन करते रहे तो आप के जीवन से पीड़ा, भूत, प्रेत, आदि का सुमल नाश हो जाएगा।

१. इस कवच का पठन करने से साधक के समस्त दुख, दोष, रोग ,भय आदि व्याधि का नाश हो जाता है।
२. हनुमान कवच का पाठ करने से जातक के आत्मिक बल मे वृद्धि होती है और भय का नाश होता है।
३. हनुमान कवच शिवजी द्वारा स्वागतीय है इसी लिए इसे पढ़ने से जातक के जीवन को एक दिशा मिलती है और जीवन का कल्याण होता है।

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